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विदेशी मुद्रा स्वैप

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Sri Lanka Crisis

जानें क्या होता है मुद्रा विनिमय समझौता (Currency Swap Agreement) तथा इसके इस्तेमाल के क्या फायदे हैं?

नमस्कार दोस्तो! स्वागत है आपका जानकारी ज़ोन में जहाँ हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, अर्थव्यवस्था, ऑनलाइन कमाई तथा यात्रा एवं पर्यटन जैसे क्षेत्रों से महत्वपूर्ण एवं रोचक जानकारी आप तक लेकर आते हैं। आज इस लेख में हम बात करेंगें मुद्रा विनिमय समझौते या Currency Swap Agreement के बारे में, जानेंगे यह कैसे काम करता है तथा इसके क्या फायदे हैं।

मुद्रा विनिमय (Currency Swap)

मुद्रा विनिमय विभिन्न प्रकार के डेरिवेटिव वित्तीय उत्पादों में एक है, मुद्रा विनिमय से आशय मुद्राओं को अपास में बदलने से है। इसमें दो भिन्न देशों से संबंधित लोग अथवा संस्थाएं अपनी आवश्यकतानुसार किसी निश्चित राशि को एक निश्चित समय के लिए एक दूसरे की मुद्राओं में तत्कालीन विनिमय दर के अनुसार बदल देती हैं।

कोई भी दो लोग, संस्थाएं, कंपनियाँ आदि ऐसा करती हैं, क्योंकि उन्हें व्यापार आदि हेतु एक दूसरे की मुद्रा की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त इस प्रकार मुद्रा विनिमय के और भी फायदे हैं, जिनकी चर्चा नीचे की गई है।

मुद्रा विनिमय समझौते की प्रक्रिया

आइए इसकी कार्यप्रणाली को एक उदाहरण की सहायता से समझते हैं। मान लें “रमेश” जो कि, एक भारतीय उद्योगपति है को अमेरिका में अपनी एक फर्म के लिए एक लाख अमेरिकी डॉलर की पाँच वर्षों के लिए आवश्यकता है। एक डॉलर को 75 रुपयों के बराबर समझा जाए तो एक लाख अमेरिकी डॉलर की रुपयों में कीमत 75 लाख रुपये होगी। वहीं “स्टीव” जो कि, एक अमेरिकी उद्योगपति है को भारत में अपनी किसी कंपनी के खर्च के लिए 75 लाख भारतीय रुपयों की 5 वर्षों के लिए आवश्यकता है

रमेश यदि किसी अमेरिकी बैंक से ऋण लेता है तो उसे स्टीव की तुलना में अधिक ब्याज चुकाना पड़ेगा इसके अतिरिक्त यदि भविष्य में रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ तो रमेश को ब्याज तथा मूलधन के रूप में अधिक भुगतान करना पड़ेगा। इसके अलावा स्टीव को भी भारतीय बैंक से ऋण लेने पर रमेश की तुलना में अधिक ब्याज देना होगा। उदाहरण के तौर पर माना रमेश को भारत में 75 लाख रुपयों तथा अमेरिका में 1 लाख डॉलर का ऋण क्रमशः 10% तथा 8% की वार्षिक ब्याज दर पर मिलता है, जबकि स्टीव को यही ऋण 15% तथा 6% की सालाना ब्याज दर पर प्राप्त होता है।

यदि स्टीव अपने देश में किसी बैंक से एक लाख डॉलर का ऋण लेकर रमेश की अमेरिका स्थित फर्म को दे तथा बदले में रमेश किसी भारतीय बैंक से 75 लाख रुपयों का ऋण लेकर स्टीव की भारत स्थित कंपनी को दे दे, तो इस प्रकार दोनों को सस्ती ब्याज दरों में ऋण प्राप्त हो जाएगा। वर्ष के अंत में रमेश 75 लाख पर 10% के अनुसार 7,50,000 रुपयों का ब्याज अपने बैंक को अदा करेगा वहीं स्टीव एक लाख डॉलर पर 6% के अनुसार 6,000 डॉलर का भुगतान अपने बैंक को करेगा।

इसके पश्चात स्टीव की भारत स्थित कंपनी रमेश को 7,50,000 रुपयों का भुगतान करेगी जो उसने स्टीव को दिए विदेशी मुद्रा स्वैप गए ऋण की एवज़ में चुकाए हैं एवं रमेश की अमेरिका स्थित फर्म स्टीव को 6,000 डॉलर अदा करेगी जो उसने रमेश के लिए गए ऋण के ब्याज के रूप में दिए थे। इस प्रकार पाँच वर्षों की अवधि तक प्रत्येक वर्ष बैंकों को दिए गए ब्याज का भी दोनों कंपनियों द्वारा विनिमय कर लिया जाएगा।

पाँच वर्षों की अवधि के पश्चात रमेश एक लाख डॉलर का मूलधन स्टीव को लौटाएगा और स्टीव 75 लाख रुपयों का मूलधन रमेश को वापस करेगा। यह पूरी व्यवस्था मुद्रा विनिमय (Currency Swap) कहलाती है। मूलधन को लौटाने के समय रुपये तथा डॉलर की विनिमय दर पूर्व में भी निर्धारित की जा सकती है या तत्कालीन दर पर भी विनिमय किया जा सकता है।

इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण फायदा यह है कि, इसके द्वारा मुद्रा को देश के बाहर भेजने की आवश्यकता नहीं होती। इसके अतिरिक्त यदि रमेश भारत के बजाए अमेरिका से ऋण लेता तो उसे प्रतिवर्ष ब्याज के रूप में 8,000 डॉलर चुकाने पड़ते किन्तु यदि रुपया समय के साथ डॉलर के मुकाबले कमज़ोर हुआ तो इन 8,000 डॉलर के ब्याज हेतु रमेश को अधिक रुपयों की आवश्यकता पड़ेगी।

देशों के मध्य मुद्रा विनिमय समझौते

लोगों के अलावा विभिन्न देशों की सरकारें भी इसका उपयोग करती हैं। जैसा कि, आप जानते हैं वर्तमान में अमेरिकी डॉलर एक प्रमुख वैश्विक मुद्रा के रूप में प्रचलन में है। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए किसी भी देश को डॉलर की आवश्यकता होती है अतः सभी देशों के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में अधिक मात्रा में डॉलर हो यह अहम हो जाता है। इस प्रकार माँग बड़ने के कारण अमेरिकी डॉलर अन्य देशों की घरेलू मुद्रा की तुलना में मजबूत होता जाता है तथा वैश्विक बाजार में अमेरिकी मुद्रा का प्रभुत्व एवं एकाधिकार बढ़ता है।

किसी आर्थिक संकट या व्यापार घाटे की स्थिति में देश के केंद्रीय बैंक को विदेशी मुद्रा भंडार से उसकी भरपाई करनी पड़ती है ताकि उस देश की घरेलू मुद्रा और डॉलर की विनिमय दर स्थिर बनी रहे। किंतु यदि आर्थिक संकट बड़ा हो अर्थात विदेशी मुद्रा भंडार में उपलब्ध डॉलर से भी जब घाटे की पूर्ति न कि जा सके तब ऐसी स्थिति में IMF जैसी संस्थाओं या किसी देश से ऋण लेने की आवश्यकता पड़ती है, साल 1991 में आया आर्थिक संकट इसका उदाहरण है।

समझौते की आवश्यकता

हमने आर्थिक संकट से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऋण की चर्चा की किन्तु विदेशी मुद्रा में ऋण लेने का एक मुख्य नुकसान यह है की भविष्य में यदि भारतीय रुपया डॉलर की तुलना में कमजोर हुआ तो भारत को ऋण में ली गई राशि से अधिक मूलधन चुकाना पड़ेगा। इसके अलावा उच्च ब्याज दर भी एक महत्वपूर्ण समस्या है।

इन्हीं समस्याओं के समाधान के रूप में मुद्रा विनिमय या Currency Swap समझौता सामने आया है। इसके तहत कोई दो देश यह समझौता करते हैं कि, किसी निश्चित सीमा तक वे देश निर्धारित विनिमय दर (Exchange Rate) तथा कम ब्याज पर एक दूसरे की घरेलू मुद्रा या कोई तीसरी मुद्रा जैसे डॉलर खरीद सकेंगे।

भारत की स्थिति

साल 2018 में भारत तथा जापान के मध्य 75 बिलियन डॉलर का मुद्रा विनिमय समझौता (Currency Swap Agreement in Hindi) हुआ है। इसके अनुसार भारत अल्पकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति या व्यापार घाटे की परिस्थिति में अपनी मुद्रा देकर जापान से विदेशी मुद्रा स्वैप 75 बिलियन डॉलर तक की राशि के येन या डॉलर तय विनिमय दर पर एक निश्चित अवधि के लिए खरीद सकता है।

अवधि पूर्ण हो जाने पर जापान भारत को उसकी मुद्रा लौटाकर दिए गए डॉलर या येन वापस ले लेगा जैसा की हमने रमेश तथा स्टीव के उदाहरण में देखा। इसके अतिरिक्त सार्क देशों के साथ भी 2 बिलियन डॉलर का समझौता करने का लक्ष्य है, जिसके चलते जुलाई 2020 में श्रीलंका से 400 मिलियन डॉलर का मुद्रा विनिमय समझौता किया जा चुका है।

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Sri Lanka Crisis: 20 करोड़ डॉलर की करेंसी स्वैप सुविधा एक साल के लिए बढ़ाई गई, मुश्किल घड़ी में इस देश में बढ़ाया मदद का हाथ

Sri Lanka Crisis: बांग्लादेश की सेंट्रल बैंक के निदेशकों ने रविवार को श्रीलंका को मदद देने के फैसले पर अपनी मुहर लगाई थी. इस फैसले के बाद यकीनन उसकी आर्थिक समस्या पर मरहम लग सकेगा.

By: ABP Live | Updated at : 09 May 2022 11:31 PM (IST)

Sri Lanka Crisis: श्रीलंका ऐतिहासिक आर्थिक संकट से जूझ रहा है. विश्व बैंक समेत भारत और दूसरे तमाम देश आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहे श्रीलंका की मदद के लिए आगे आ रहे हैं. इस क्रम में बांग्लादेश ने भी मदद का हाथ आगे बढ़ाया है और श्रीलंका को दी गई 20 करोड़ डॉलर की करेंसी स्वैप (मुद्रा अदला-बदली) सुविधा को आगे बढ़ाने का फैसला किया है.

पिछले साल दी थी ये सुविधा

खबरों के मुताबिक नकदी की भारी कमी से जूझ रहे श्रीलंका को दिए गए 20 करोड़ डॉलर (1 हजार 500 करोड़ रुपये) की करेंसी स्वैप सुविधा को एक और वर्ष के लिए बढ़ा दिया है. ताकि इससे द्वीप-राष्ट्र के घटते विदेशी भंडार को बढ़ावा दिया जा सके. हम आपको बता दें कि बांग्लादेश ने मई 2021 में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए यह सुविधा दी थी. अब ऐसा करने वाला बांग्लादेश पहला दक्षिण एशियाई देश बन गया.

ऐसे हुआ ये फैसला

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रिपोर्टों के मुताबिक, बांग्लादेश की सेंट्रल बैंक के निदेशकों ने रविवार को इस फैसले पर अपनी मुहर लगाई है. बैंक के प्रवक्ता सेराजुल इस्लाम की तरफ से इस संबंध में जारी किए गए बयान में कहा गया कि श्रीलंका को दिए गए ऋण को लेकर यथास्थिति बरकरार रखी गई है और करेंसी स्वैप की सुविधा को एक वर्ष के लिए विस्तारित किया गया है.

कई बार बढ़ाई गई है समय-सीमा

यहां यह भी बता दें कि श्रीलंका को यह ऋण दिए जाने के तीन महीने के भीतर चुकाना था, लेकिन श्रीलंका के अनुरोध पर इस अवधि को कई बार बढ़ाया गया था, क्योंकि देश का आर्थिक संकट गहराना शुरू हो गया था. मौजूदा दौर में जब देश के आर्थिक हालात बेहद खराब हो चुके हैं तो एक बार फिर से इस समयसीमा को बढ़ाने का फैसला किया गया है. यही नहीं श्रीलंका में दो दिन पहले ही फिर से एक बारआपातकाल लगाया गया.

इतने देशों का है कर्ज

देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म होने के चलते श्रीलंका में आर्थिक संकट बुरी तरह गहरा गया है. आलम ये है कि ये देश जरूरी सामानों का आयात करने में भी सक्षम नहीं है. यहां ईंधन खत्म हो चुका है और बिजली कटौती अपने चरम पर है. इन सबके बीच फॉरेक्स रिजर्व की बात करें तो जून 2019 के 8,864 मिलियल डॉलर की तुलना में कम होकर जनवरी 2022 में 2,361 मिलियन डॉलर पर पहुंच गया था. श्रीलंका पर 51 अरब डॉलर यानि करी 3 लाख 82 हजार करोड़ रुपये का भारी भरकम कर्ज है. इसमें से सबसे ज्यादा कर्ज चीन का है.

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Published at : 10 May 2022 06:57 AM (IST) Tags: India Money Economy Debt srilanka Crisis हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें विदेशी मुद्रा स्वैप बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi

विदेशी करेंसी मार्केट में रूस ने रखा है 300 अरब डॉलर का कैश, मनी मार्केट में ला सकता है भूचाल?

रूस (Russia) के पास फॉरेन करेंसी स्वैप मार्केट में 300 अरब डॉलर की विदेशी करेंसी है, जिसमें थोड़ी भी हलचल ग्लोबल मनी मार्केट में भूचाल लाने के लिए पर्याप्त हैं

रूस (Russia) के पास अभी भी करीब 300 अरब डॉलर की विदेशी करेंसी है, जो फॉरेन करेंसी स्वैप मार्केट में है। अगर इन्हें प्रतिबंध लगाकर जब्त किया जाता है या इन्हें प्रतिबंधों से बचाने के लिए अचानक से निकाल लिया जाता है, तो दोनों ही परिस्थिति में यह ग्लोबल मनी मार्केट (Money Markets) में भूचाल लाने के लिए पर्याप्त हैं।

क्रेडिट सुइस ग्रुप के स्ट्रैटजिस्ट जॉल्टन पॉज्सर (Zoltan Pozsar) ने बैंक ऑफ रसिया और फाइनेंशियल मार्केट के डेटा के अध्ययन के बाद यह पाया कि रूस ने ग्लोबल करेंसी मार्केट में करीब 300 अरब डॉलर (करीब 22,600 अरब रुपये) रखा हुआ है।

पॉज्सर ने अपनी रिपोर्ट में कहा, "जब पैसे का प्रवाह बदलता है तो, अंतर बढ़ जाता है। अगर स्थितियां बिगड़ती है तो, यह कहना मुश्किल नहीं है कि इसका फॉरेन स्वैप मार्केट पर सीधा असर पड़ेगा।"

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उन्होंने बताया कि रूस ने अपनी सभी ट्रेजरी होल्डिंग को 2018 में बेच दिया था। हालांकि इसके बावजूद रूस के सेंट्रल बैंक और प्राइवेट सेक्टर के पास करीब 1 लाख करोड़ डॉलर की लिक्विड वेल्थ है और इसका एक बड़ा हिस्सा अमेरिकी डॉलर में है जो लोगों के अनुमान से कहीं ज्यादा है। पॉज्सर ने अनुमान जताया कि रूस के पास 200 अरब डॉलर फॉरेन-एक्सचेंज स्वैप में पड़े हैं और करीब 100 अरब डॉलर विदेशी बैंकों में जमा हैं।

इस बीच अमेरिका ने रूस पर सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाने शुरू भी कर दिए हैं। बाइडेन प्रशासन यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि रूस आगे से डॉलर, पाउंड, यूरो आदि किसी मुद्रा में अपना कारोबार न कर सके। इसके साथ रूस की सामरिक घेराबंदी भी अमेरिका ने शुरू कर दी है।

MoneyControl News

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First Published: Feb 25, 2022 3:13 PM

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Sri Lanka Crisis: कर्ज से जूझते श्रीलंका के लिए भारत बना सहारा, करेंसी स्वैप से लेकर दवा, ईंधन तक की पहुंचाई मदद

Sri Lanka Crisis: श्रीलंका के लिए आज हर एक दिन एक सदी की तरह साबित हो रहा है. आर्थिक संकट के बीच महंगाई से परेशान लोगों ने राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री आवास पर धावा बोल दिया है. ऐसे में भारत लगातार अपने पड़ोसी मुल्क की मदद कर रहा है.

Sri Lanka Crisis

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gnttv.com

  • नई दिल्ली ,
  • 11 जुलाई 2022,
  • (Updated 11 जुलाई 2022, 10:44 AM IST)

1948 में मिली आजादी के बाद से अब तक, श्रीलंका सबसे गंभीर संकट का सामना कर रहा है

भारत ने की 3.8 बिलियन डॉलर की मदद

श्रीलंका का आर्थिक संकट किसी से छिपा नहीं है. और ऐसे में, भारत सरकार अपने पड़ोसी देश की हर संभव मदद के लिए तैयार है. फिलहाल सबकी नजरें कोलंबों में मची अफरातफरी हैं. जहां आम जनता राष्ट्रपति भवन से लेकर पीएम आवास तक जा पहुंची है.

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के आवासों पर कब्जा करने वाले श्रीलंकाई प्रदर्शनकारियों ने साफ कर दिया है कि वे दोनों के इस्तीफा देने तक उनके घरों पर कब्जा करना जारी रखेंगे. इन सब के बीच भारत लगातार श्रीलंका के लिए संकटमोचक बना हुआ है.

आजादी के बाद से अब तक का सबसे बड़ा संकट
1948 में मिली आजादी के बाद से अब तक, श्रीलंका सबसे गंभीर संकट का सामना कर रहा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अभी श्रीलंका में महंगाई की दर 54 फीसदी को भी पार कर चुकी है. ये पूरे दक्षिण एशिया के किसी भी देश में महंगाई का सबसे भयानक स्तर है.

श्रीलंका में लोगों को रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजें भी नहीं मिल पा रही हैं और मिल रही हैं तो कई गुना महंगी. देश में सबसे ज्यादा ईंधन की कमी है. पेट्रोल-डीजल की इतनी कमी है कि इनकी राशनिंग करनी पड़ रही है. श्रीलंकाई रुपये की वैल्यू चार महीने में डॉलर के मुकाबले 80 फीसदी से ज्यादा कम हो चुकी है. मार्च में श्रीलंका में 1 डॉलर की कीमत 201 श्रीलंकाई रुपये थी जो अब 362 श्रीलंकाई रुपये पर आ चुकी है.

आपको बता दें कि श्रीलंका को इस साल विदेशी कर्ज के रूप में सात अरब डॉलर और 2026 तक 25 अरब डॉलर अदा करना है. लेकिन श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर एक अरब डॉलर से भी कम रह गया है. ऐसे में श्रीलंका के पास इस साल भी विदेशी कर्ज चुकाने जितना पैसा नहीं बचा है.

भारत ने की 3.8 बिलियन डॉलर की मदद
ऐसे मुश्किल हालात में अपने पड़ोसी मुल्क की मदद के लिए भारत ने हाथ आगे बढ़ाया है. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि श्रीलंका का मुद्दा गंभीर है और यह अभी नहीं हुआ है बल्कि धीरे-धीरे पनपा है. हालांकि, पीएम मोदी की पॉलिसी है- पड़ोसी पहले. इसका मतलब है कि हम अपने पड़ोसियों की मदद के लिए पहल करें.

और यह सिर्फ नीति नहीं है बल्कि भारत ने इसपर काम भी किया है. जिसके तहत, श्रीलंका को भारत ने इस साल 3.8 बिलियन डॉलर की मदद मिली है. यह मदद करेंसी स्वैप, खाने-पीने की चीजों, दवाओं, फर्टिलाइजर और ईंधन के रूप में की गई है.

डीजल-पेट्रोल की भी सप्लाई की गई
भारत सरकार और लोगों ने मिलकर श्रीलंका को 25 टन से ज्‍यादा दवाओं की आपूर्ति की है. बीते कुछ महीनों में भारत ने श्रीलंका को तेल संकट से निपटने के लिए कई बार डीजल-पेट्रोल की भी सप्लाई करके बड़ी मदद विदेशी मुद्रा स्वैप की है. श्रीलंका के लिए भारत की ओर से की जा रही ये मदद किसी संजीवनी से कम नहीं है.

मुसीबत की इस घड़ी में भारत अपने पड़ोसी देश, श्रीलंका के साथ खड़ा है. भारत की तरफ से दवा, अनाज से लेकर रुपये-पैसे तक श्रीलंका की हर मुमकिन मदद की दा रही है और भारत सरकार ने यह मदद आगे भी जारी रखने का वादा किया है.

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