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घाटे का सौदा

घाटे का सौदा
A G | Updated on: 15 Sep 2021 3:58 PM GMT

इन 'लग्जरी फीचर्स' की वजह से कार खरीदना हो सकता है घाटे का सौदा, जानें कैसे

कुछ फीचर्स ऐसे होते हैं जिनकी कार कंपनियां प्रचार तो बहुत करती हैं लेकिन उनकी जरुरत बहुत कम पड़ती है.

By: एबीपी न्यूज़ | Updated at : 26 Jan 2021 10:35 PM (IST)

ग्राहकों को लुभाने के लिए कार कपंनियां तरह-तरह के फीचर गाड़ियों में देती हैं. कई बार इन फीचर्स से प्रभावित होकर ग्राहक कार भी खरीद लेते हैं, बिना यह समझें कि इन फीचर्स की उसे जरुरत है भी या नहीं. जिसके कारण बाद में उनके लिए ये फीचर ज्यादा काम के नहीं रह जाते.

हम आपको कुछ ऐसे फीचर्स के बारे में आज बताएंगे जिनकी कोई खास जरुरत नहीं होती है और जिन्हें आसानी से नजर अंदाज किया जा सकता है.

कीलेस पुश बटन स्टार्ट यह फीचर इनदिनों कई कारों में दिया जा रहा है. कंपनियां इस फीचर को बहुत हाईलाइट करती हैं लेकिन यह फीचर बहुत काम का नहीं है. हालांकि कार को बिना चाबी के अनलॉक किया जा सकता है और केवल एक पुश बटन से कार को स्टार्ट किया जा सकता है. वैसे अधिकांश कारों में रिमोट लॉकिंग फीचर दिया जा रहा है और बटन दबा कर कार को लॉक-अनलॉक किया जा सकता है. यह फीचर स्टैंडर्ड मिलते तो ठीक वरना बहुत जरूरी नहीं है.

ऑटोमैटिक हेडलैंप्स ऑटोमैटिक हेडलैंप्स कार कंपनियां बहुत बड़ा लग्जरी फीचर बताती हैं. लेकिन यह कोई बहुत महत्वपूर्ण फीचर नहीं है. आप मैनुअली भी कार की लाइट स्विच ऑन और स्विच ऑफ कर सकते हो. यह फीचर तभी ठीक है जब कार में आपको स्टैंडर्ड मिलता है, लेकिन इस फीचर के लिए अलग अपने बजट से ज्यादा की कार खरीदना सही नहीं है.

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सनरूफ यह फीचर अब काफी कारों में मिलता है. . भारत जैसे गर्म और नमी वाले देश में बहुत काम का ऑप्शन नहीं है. सनरूफ वाली कारों को चलाने वालों का भी यही अनुभव है कि इससे कार में धूल आ जाती है. शुरुआत में ओपन रूफ के साथ चलना लुभावना लगता है लेकिन बाद में इससे तौबा कर ली.

बेज इंटीरियर इस फीचर को देख कर अगर कार खरीद रहे हैं तो सावधान हो जाएं. आजकल बेज इंटीरियर तमाम कारों में मिलता है. बेज इंटीरियर होने से कार बहुत गंदी होती है. कार के इंटीरियर में गहरे रंग ज्यादा अच्छे होते हैं क्योंकि उसमें दाग धब्बे नहीं दिखते. बेज रंग को मैनटेन रोज ही साफ-सफाई ड्राइक्लीनिंग वगैरहा करनी पड़ती है.

टच सेंसिटिव एसी कंट्रोल कार कंपनियां इसे भी लग्जरी फीचर कहती है. यह फीचर कई बार हादसे भी करवा सकता है. एसी की स्पीड नोब के जरिए कंट्रोल हो सकती है. ड्राइविंग के दौरान ये करना आसान होता है, बिना देखे भी नोब को एडजस्ट किया जा सकता है. टच सेंसिटिव बटन को दबाने के लिए फोकस करना पड़ता है जबकि ड्राइविंग के दौरान हमारा मेन फोकस ड्राइविंग होता है.

प्रोक्सीमिटी सेंसर्स इस फीचर के तहत जैसे ही कोई भी कार या व्यक्ति कार के नजदीक आएगा, साउंड अलार्म बजने लगेगा. लेकिन यह फीचर बहुत काम नहीं है. भारत में भीडभाड़ वाली सड़कों की कमी नहीं. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अलार्म कितनी बार बजेगा.

एंबियंट लाइट एंबियंट लाइट से केबिन थोड़ा सुंदर लगता है. लेकिन इस फीचर के लिए अलग से खर्च करना बहुत समझदारी की बात नहीं है. इस फीचर से कई तरह की लाइट्स आने से ड्राइविंग के दौरान आपका ध्यान भटक सकता है.

फॉक्स रूफ रेल्स इस फीचर को भी बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है. इस फीचर वाली गाड़ी को लेने के लिए अच्छी खासी जेब ढीली करनी पड़ती है. कुछ लोग अपनी गाड़ियों को स्पोर्टी लुक देने के लिए आफ्टर मार्केट इन एसेसरीज को इँस्टॉल भी कराते हैं. अगर आपको अपनी कार की छत पर समान रखना है तो इसकी बजाय घाटे का सौदा मेटल कैरियर या फिर रूफ बॉक्स भी लगा सकते हैं.

वॉयस कमांड यह फीचर भारत में अधिक काम का नहीं. दरअसल इनकी कोडिंग विदेश में बोली जाने वाली घाटे का सौदा अंग्रेजी के हिसाब से की जाती है. जबकि भारतीयों को उच्चारण थोड़ा अलग होता है. इसे समझने में भी बहुत मुश्किल होती है. इस फीचर की वजह से ड्राइविंग में भी बाधा आती है.

ऑटोमैटिक वाइपर्स यह फीचर भी अब कई गाड़ियों में मिलता है. इस फीचर में सेंसर पर पानी पड़ते ही वाइपर्स ऑटोमैटिकली शुरू हो जाते हैं. लेकिन दिक्कत यह है कि हल्का सा पानी पड़ते ही बिना जरूरत के चालू हो जाते हैं. साथ ही ब्लेड भी जल्दी घिसेंगे. जबकि मैनुअली वाइपर अपनी जरूरत के मुताबिक ऑन-ऑफ किया जा सकता है.

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Published at : 26 Jan 2021 10:32 PM (IST) Tags: Luxury features features car हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Auto News in Hindi

घाटे का सौदा बन कर रह गई मटर की खेती, लागत मूल्य भी नहीं जुटा पा रहे किसान

ऐलनाबाद (सुरेंद्र सरदाना): एक तरफ तो सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की मुहिम चला रही है और किसानों को सब्जी बीजने के लिए प्रेरित कर आर्थिक रूप से सहयोग कर रही है, लेकिन धरातल की तस्वीर अन्नदाता के लिए शुभ संकेत नहीं दे रही है, कुछ अलग ही रूप दिखा रही है। सब्जियों की खेती करने वाले किसान लागत मूल्य भी नहीं जुटा पा रहे हैं। इस वर्ष एकाएक ही गर्मी से मटर की फसल के उत्पादन पर पड़े विपरीत असर के चलते उत्पादन गत वर्ष के मुकाबले लगभग आधा है यानी जो उत्पादन गत वर्ष 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर था वही उत्पादन इस वर्ष घटकर 75 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रह गया है।

न केवल उत्पादन कम हुआ है बल्कि दो दिनों में पड़ी गर्मी से मटर की फसल के एकदम बदले रंग से प्रति किलो दाम भी मंडियों में कम मिलने से अन्नदाता मायूस हैं। गांव तलवाड़ा खुर्द के किसान रेशम सिंह ने बताया कि गत वर्ष उन्हें उन्हें मटर की फसल से काफी आर्थिक रूप से फायदा हुआ था। गत वर्ष उत्पादन व मंडी में भाव दोनों ही ठीक थे, लेकिन इस वर्ष मटर की उपज से लाभ मिलना तो दूर की बात है, लागत मूल्य भी निकालने में उन्हें काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।

वहीं किसान छिंदा सिंह ने बताया कि उसने अन्य किसानों को देख कर पहली बार मटर की खेती की काश्त की है और पहली बार ही यह खेती उनके लिए घाटे का सौदा बन कर रह गई है। इस लिए भविष्य में वह ऐसी मटर की खेती की काश्त से तौबा कर परम्परागत गेहूं व सरसों की खेती की तरफ ध्यान देंगे। ताकि उन्हें फिक्स आय तो मिल सके।

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घाटे का सौदा साबित हो रही किसानों के लिए मिर्च की खेती

किसानों को बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि मिर्च की खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है, दरहसल, मध्य प्रदेश घाटे का सौदा में अधिक.

A G

A G | Updated on: 15 Sep 2021 3:58 PM GMT

किसानों को बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि घाटे का सौदा मिर्च की खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है, दरहसल, मध्य प्रदेश में अधिक.

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किसानों को बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि मिर्च की खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है, दरहसल, मध्य प्रदेश में अधिक उत्पादन के चलते इस मिर्च फसल के थोक दाम इस कदर गिर गए हैं कि उनके लिए इसके उत्पादन और इसे खेत से तुड़वाने की लागत निकालना मुश्किल हो रहा है।

बता दे कि, राज्य के सबसे बड़े मिर्च उत्पादक निमाड़ अंचल के खरगोन जिले के गजानंद यादव इन किसानों में शामिल हैं, जिन्होंने पांच एकड़ में मिर्च बोई है।

गजानंद यादव ने बताया कि, "इस वक्त हरी मिर्च का थोक मूल्य 11 से 12 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच चल रहा है, जबकि हमें एक किलोग्राम मिर्च उगाने में करीब आठ रुपये की लागत आती है और मजदूर इसे खेत से तोड़ने के बदले पांच रुपये किलोग्राम के मान से मेहनताना लेते हैं।

उन्होने आगे कहा कि, पिछले साल किसानों को एक किलोग्राम हरी मिर्च के बदले 42 रुपये तक का ऊंचा दाम मिला था और इसे देखते हुए वर्तमान सत्र में इसकी खेती के प्रति उनकी रुचि बढ़ गई।

महिला प्रधान फ़िल्में घाटे का सौदा :विद्या

विद्या बालन

विद्या बालन ने परिणीता, हे बेबी और भूल भुलैया जैसी फ़िल्मों में काम किया है.

ख़ूबसूरत, प्रतिभावान..युवा फ़िल्म अभिनेत्री विद्या बालन के लिए ऐसे कई विशेषण आप इस्तेमाल कर सकते हैं.

काफ़ी कम उम्र में विद्या ने फ़िल्मी दुनिया में अपने घाटे का सौदा दम पर अपने लिए जगह बनाई है.

जम्मू में एक सैनिक शिविर में समय बिताने के बाद थकान भरे सफ़र से मुंबई लौटी विद्या ने महिला दिवस के मौके पर फ़ोन के ज़रिए बीबीसी से विशेष बातचीत की.

विद्या का मानना है कि फ़िल्म आज भी व्यवसायिक स्तर पर हीरो के नाम पर ही चलती है, इसलिए फ़िल्मकार महिला प्रधान फ़िल्में बनाने से हिचकिचाते हैं और अभिनेत्रियों को पैसे भी कम मिलते हैं.

पेश है विद्या बालन से बीबीसी संवाददाता वंदना की बातचीत के कुछ मुख्य अंश.

महिला दिवस आपके लिए एक ख़ास दिन होता है या आम दिनों की तरह इसे मनाती हैं? साल का हर दिन गुज़रने के बाद हमारी उम्र एक दिन बढ़ती है फिर भी हर साल हम जन्मदिन मनाते हैं. उसी तरह से रोज़ महिला दिवस ज़रूर होता है लेकिन फिर भी एक ख़ास दिन चुना गया है जो अच्छी बात है. महिलाओं ने हर क्षेत्र में जो कुछ भी हासिल किया है उसका जश्न मनाने का दिन है.

वो कौन सी महिलाएँ रही हैं जिन्होंने आपको सबसे ज़्यादा प्रभावित किया? सबसे पहली तो मेरी माँ जो होममेकर हैं, घर में रहती हैं. उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी ईंट पत्थरों के मकान को घर बनाने में समर्पित कर दी है. हम शायद गृहणियों की अहमियत पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं. मेरी बहन ने भी मुझे बहुत प्रेरणा दी है, वो कॉरपोरेट जगत में है. मैने बचपन से यही चाहा था कि मैं अपनी बहन की तरह बनूँ. उसने ज़िंदगी में वो सब कुछ किया जो वो करना चाहती थी. सार्वजनिक जीवन में शबाना आज़मी की मैं बहुत इज़्ज़त करती हूँ. उनके जैसी अभिनेत्री देश में ही दुनिया में बहुत कम है. उन्होंने ज़िंदगी अपने क़ायदों के मुताबिक जी है.

दो देश,दो शख़्सियतें और ढेर सारी बातें. आज़ादी और बँटवारे के 75 साल. सीमा पार संवाद.

आम ज़िंदगी में भी कई ऐसी मिसाले हैं. जब मैं कॉलेज जाने के लिए लोकल ट्रेन में जाती थी तो देखती थी कि कई महिलाएँ काम-काज के लिए आ-जा रही हैं, कोई साथ में सब्ज़ी काट रही है. कई मुद्दों पर चर्चा हो रही है. ज़िंदगी में अलग-अलग मौकों पर कई महिलाओं ने मुझे प्रभावित किया है.

आपने बताया कि पहले आप लोकल ट्रेन में सफ़र करती थी लेकिन अब सेलिब्रटी होने के नाते ऐसी कई चीज़ों से आपको नहीं गुज़रना पड़ता जो एक आम लड़की को झेलनी पड़ती है. मुंबई में नए साल पर क्या हुआ सबने देखा. महिलाओं के ख़िलाफ़ और भी कई अपराध होते हैं. ये सब चीज़ों आपको परेशान करती हैं? बहुत परेशानी होती है और ग़ुस्सा भी बहुत आता है कि कैसे इतने सारे लड़कों ने दो लड़कियों को घेर लिया. लेकिन सच है कि ऐसा हर जगह होता है. ऐसा क्यों होता है इसके मायने भी कभी-कभी समझ में नहीं आते. लेकिन इसका मुक़ाबला इसी से किया जा सकता है कि आप चुप न रहें. सही समय पर सही मुद्दों को उठाया जाए. हम लोग ज़्यादातर चुप बैठते हैं, इसलिए ये अपराध होते रहते हैं.

अगर आज के दिन एक चीज़ बदलना चाहें जिससे महिलाओं की ज़िंदगी बेहतर हो सके, तो क्या बदलना चाहेंगी. मौके तो लड़कियों को अब काफ़ी मिल रहे हैं लेकिन मानसिकता बदलनी होगी. ख़ुद महिलाओं को भी. उनके मन में भी डर रहता है क्योंकि कई पीढ़ियों से उन्हें वैसे ही पाला-पोसा गया है. कभी-कभी हम ख़ुद पर ही शक करने लगती हैं. महिलाओं को ये समझना होगा कि कुछ भी असंभव नहीं है और वो हर चीज़ अपने क़ायदों के मुताबिक हासिल कर सकती है. क्या 10-15 सालों में ऐसा हो पाएगा? दस-पंद्रह साल पहले के मुकाबले आज चीज़ें बदली हैं, कुछ सालों बाद और बदलेंगी. इस बार बदलाव की रफ़्तार तेज़ होगी क्योंकि अब कई सारी महिलाएँ अलग-अलग क्षेत्रों में नाम कर रही हैं और इससे बाक़ी लड़कियों को प्रोत्साहन मिल रहा है कि वो अपनी मानसिकता बदल सकें.

फ़िल्मों की बात करें तो आपने परिणीता जैसी फ़िल्म से शुरुआत की जिसमें आपकी सशक्त भूमिका थी. लेकिन महिला प्रधान फ़िल्में आजकल कम बनती हैं.

दरअसल बात ये है कि व्यवसायिक स्तर पर फ़िल्म आज भी हीरो के नाम पर चलती है, इसलिए फ़िल्में भी उनके इर्द-गिर्द घूमती हैं. अभिनेत्री के लिए सशक्त रोल वाली फ़िल्म निर्माता के लिए फ़ायदे का सौदा नहीं है. लेकिन अच्छी बात ये है कि आजकल बहुत सारी छोटी बजट की फ़िल्में बन रही हैं जिनमें व्यवसायिक स्तर पर नुकसान की आशंका कम होती हैं और आप अपने तरीके की फ़िल्में बना सकते हैं. मदर इंडिया या बंदिनी के घाटे का सौदा घाटे का सौदा दौर के बाद ज़रूर एक तरह की गिरावट आई थी जब ऐसी फ़िल्में बननी कम हो गई. लेकिन अभिनेत्रियों को अब धीरे-धीरे ऐसी फ़िल्में मिलने लगी हैं. बहुत सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं.प्रयोग चल रहा है, उम्मीद करती हूँ कि जल्द ही चीज़ें बदलेगी. समाज में लड़के-लड़कियों में कई बार भेदभाव होता है. बॉलीवुड महिलाओं के लिए कैसी जगह है. निजी स्तर पर मुझे बहुत इज़्ज़त मिली है. मैं भाग्यशाली हूँ कि बहुत अच्छे रोल भी करने को मिले हैं- ऐसी महिलाओं के रोल जिन्होंने हर काम अपनी शर्तों के मुताबिक किया. हाँ हीरो-हीरोइन की फ़ीस में यहाँ बहुत अंतर होता है. किसी महिला निर्देशक के साथ काम करने का मौका मिला है? अभी तक तो नहीं किया लेकिन उम्मीद करती हूँ कि जल्द ही वो सपना भी पूरा होगा. मैं अपर्णा सेन, मीरा नायर और दीपा मेहता के साथ काम करना चाहूँगी. आपको अब तक सबसे प्यारा कॉम्पलिमेंट क्या मिला है आज तक? ऐसे तो बहुत से लोगों ने अच्छी-अच्छी बातें कही हैं लेकिन चूँकि हम महिला दिवस पर बात कर रहे हैं तो याद आता कि किसी ने मुझसे कहा था कि 'यू आर ए वूमन फ़ॉर एवरी सीज़न एंड फ़ॉर एवरी रीज़न'..ये सुनकर बहुत अच्छा लगा था.

गलत नीतियों के कारण खेती घाटे का सौदा : चंदेल

गलत नीतियों के कारण खेती घाटे का सौदा : चंदेल

पानीपत, 8 दिसंबर। भारतीय जनता पार्टी के किसान मोर्चा की ओर से स्वामी नाथन आयोग की रिपोर्ट बारे किसानों को जागरूक करने के लिये यहां दो दिवसीय सेमिनार 11-12 दिसंबर को एसडी विद्या मंदिर में आयोजित किया जायेगा। यह जानकारी देते हुये मोर्चा के राष्टï्रीय उपाध्यक्ष सुरेश चंदेल ने कहा कि सरकार की गलत नीतियों के कारण किसानों को फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है और खेती घाटे का सौदा बन गई है।श्री चंदेल आज यहां प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि दो दिवसीय अंतर-राज्यीय कार्यशाला में स्वामी नाथन आयोग की रिपोर्ट बारे किसानों को जागृत किया जायेगा। उन्होंने कहा कि आज धान उत्पादक किसान उचित मूल्य न मिलने से आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। फसलों की सही कीमत न मिलने के कारण देश के 40 प्रतिशत किसान खेती छोड़कर अन्य कार्य कर रहे हैं। सरकार की गलत नीतियों के कारण खेती किसानों के लिये घाटे का सौदा बन गई है। उन्होंने बताया कि स्वामी नाथन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि किसान को लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत लाभांश दिया जाना चाहिये। गेहूं की फसल पर प्रति क्विंटल 1200 रूपये की लागत आ रही है। आयोग की रिपोर्ट अनुसार किसान को गेहूं का भाव 1800 रूपये क्विंटल मिलना चाहिये लेकिन सरकार इतना भाव न देकर किसानों के साथ अन्याय कर रही है। घाटे के कारण किसान आत्महत्यायें करने को मजबूर हैं।उन्होंने बताया कि किसान मोर्चा ने देश भर में किसानों को जागरूक करने के लिये तीन कार्यशालायें आयोजित करने का निर्णय लिया था। एक कार्यशाला हो चुकी है। दूसरी दस-ग्याहर दिसंबर को पानीपत में और तीसरी 16 दिसंबर को बंगलूर में आयोजित की जायेगी। कार्यशाला का उद्घाटन पार्टी के पूर्व राष्टï्रीय अध्यक्ष वेंकैयानायडू करेंगे। समापन समारोह में पूर्व मंत्री सतपाल भाग लेंगे। उन्होंने बताया कि मोर्चा के राष्टï्रीय पदाधिकारी केंद्रीय कृषि मंत्री एवं कृषि लागत आयोग से भी मिलेंगे।

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