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मूल्य नीति

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कृषि मूल्य नीति (Agricultural value policy)

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कृषि मूल्य नीति (Agricultural value policy)

    • भारत में सर्वप्रथम 1955 में कृषि लागत आयोग का गठन किया गया था| इसके अध्यक्ष प्रोफेसर दंतेवाड़ा को बनाया गया था |
    • इस आयोग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रेरित करने हेतु उन्हें उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करना था |
    • 1985 में इसका नाम बदलकर कृषि लागत एवं कीमत आयोग(CACP) कर दिया गया भारत में कृषि मूल्य नीति का उद्देश्य उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों वर्गों को सुरक्षा प्रदान करना है |
    • उत्पादक के स्तर पर अधिक उत्पादन होने पर उन्हें कीमत घटाने की स्थिति में सुरक्षा प्रदान करना तथा उपभोक्ता के स्तर पर उन्हें उचित मूल्य पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना है |
    • कुल मिलाकर CACP का उद्देश्य है कि कृषि उत्पादों की कीमत को स्थिर करना जिससे पूरी अर्थव्यवस्था में कीमत को स्थिर किया जा सके |

    न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price)

    • सरकार द्वारा प्रतिवर्ष 24 कृषि उत्पादों के लिए ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ की घोषणा की जाती है, उसका उद्देश्य होता है कि किसी वस्तु के अधिक उत्पादन की स्थिति में उसकी कीमत को एक सीमा के नीचे आने पर उत्पादकों को सुरक्षा प्रदान करना |
    • किसान अपने उत्पादों को बाजार में सही कीमत और बेचने के लिए स्वतंत्र होता है सरकार किसानों को इस बात की गारंटी देती है कि यदि बाजार के मूल्य में कमी आई तो वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उसके उत्पाद को खरीद लेंगी|
    • जिससे किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रेरणा मिलती है सरकार प्रत्येक फसल की बुवाई से पहले ऐसी घोषणा करती है, इसकी घोषणा सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक के बाद की जाती है |

    खरीद मूल्य (Purchase price)

    • सरकार द्वारा इसकी घोषणा रवि तथा खरीफ फसल की कटाई के समय की जाती है| यह न्यूनतम समर्थन मूल्य के बराबर या उससे अधिक होता है किंतु किसी भी स्थिति में यह न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम नहीं हो सकता है |

    आर्थिक मूल्य (Economic value)

    • सरकार द्वारा बफर स्टॉक के लिए अनाजों की खरीद की जाती है, इसके साथ ही इनके परिवहन भंडारण तथा अन्य प्रबंधकीय कार्य में भी खर्च करना पड़ता है इन सभी खर्चों को जोड़कर अनाज का जो मूल्य होता है उसे ही आर्थिक मूल्य कहा जाता है |

    जारी मूल्य (Current price)

    • अलग-अलग योजनाओं के लिए सरकार जिस मूल्य पर अनाज जारी करती है उसे ही जारी मूल्य कहा जाता है |
    • सरकार द्वारा कल्याणकारी योजनाओं के लिए जारी किए जाने वाले अनाजों का ‘जारी मूल्य’ आर्थिक मूल्य से मूल्य नीति कम होता है|आर्थिक मूल्य एवं जारी मूल्य के बीच के अंतर को ‘खाद्यान्न सब्सिडी’कहा जाता है|

    मूल्य निर्धारण प्रणाली(Pricing system)

    • सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण के लिए लागत प्रणाली का उपयोग किया जाता है| इसके अंतर्गत दो प्रकार की लागत का निर्धारण किया गया है C-2लागत तथा C-3 लागत |
    • C-2 लागत पर किसानों द्वारा कृषि कार्य में किया गया व्यय, श्रम तथा विद्यालयों को जोड़ा जाता है यदि जमीन पट्टे पर ली जाती है तो इसमें जमीन का किराया भी जोड़ा जाता है |
    • C-3 लागत में C-2 लागत के साथ-साथ प्रबंधकीय पारिश्रमिक के रूप में C-2 लागत का 10% जोड़ दिया जाता है |
    • C-1 लागत = फसल उत्पादन में किसानों का कुल व्यय +किसानों के द्वारा प्रयुक्त घरेलू संसाधनों का मूल्य
    • C-2 लागत = C-1 लागत+ 10% लाभ
    • C-3 लागत = C-2 लागत + किसानों के को प्रबंधकीय पारिश्रमिक का हिसाब लगाने के लिए C-2 लागत का 10%

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    Abhishek Dubey

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    मूल्य नीति

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    • मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश, 2020 को 5 जून, 2020 को जारी किया गया। यह अध्यादेश कृषि उत्पादों की बिक्री और खरीद के संबंध में किसानों को संरक्षण देने और उनके सशक्तीकरण हेतु फ्रेमवर्क प्रदान करता है। इस अध्यादेश के प्रावधान राज्यों के एपीएमसी एक्ट्स के प्रावधानों के होते हुए भी लागू रहेंगे।
    • कृषि समझौता: अध्यादेश में प्रावधान है कि किसी कृषि उत्पाद के उत्पादन या पालन से पहले कृषि समझौता किया जाएगा, जिसका उद्देश्य यह है कि किसान अपने कृषि उत्पादों को स्पॉन्सर्स को आसानी से बेच सकें। स्पान्सर में व्यक्ति, पार्टनरशिप फर्म्स, कंपनियां, लिमिटेड लायबिलिटी ग्रुप्स और सोसाइटियां शामिल हैं। ये समझौते निम्नलिखित के बीच हो सकते हैं: (i) किसान और स्पान्सर, या (ii) किसान, स्पॉन्सर, और तीसरा पक्ष। तीसरे पक्ष में एग्रीगेटर भी शामिल हैं और कृषि समझौते में उनकी भूमिका और सेवाओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख मूल्य नीति होगा। एग्रीगेटर वे होते हैं जो एग्रीगेशन से संबंधित सेवाएं प्रदान करने के लिए किसान और स्पॉन्सर के बीच बिचौलिये का काम करते हैं। राज्य सरकार कृषि समझौते की इलेक्ट्रॉनिक रजिस्ट्री के लिए एक रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी स्थापित कर सकती है।
    • समझौते में कृषि उत्पाद की सप्लाई, गुणवत्ता, मानदंड और मूल्य से संबंधित नियमों और शर्तों तथा कृषि सेवाओं की सप्लाई से संबंधित नियमों का उल्लेख हो सकता है। ये नियम और शर्तें खेती और पालन की प्रक्रिया के दौरान, या डिलिवरी के समय निरीक्षण और सर्टिफिकेशन का विषय हो सकते हैं। कृषि समझौता केंद्र और राज्य सरकार की योजनाऔं के अंतर्गत या किसी वित्तीय सेवा प्रदाता के बीमा या ऋण उत्पादों से लिंक हो सकता है। इससे किसानों या स्पॉन्सर, या दोनों के लिए जोखिम कम होगा और ऋण प्राप्त होना सुनिश्चित होगा। अध्यादेश के अंतर्गत स्पॉन्सर कृषि समझौते की मदद से किसान की जमीन या परिसर का स्वामित्व हासिल नहीं कर सकता और न ही उसमें कोई स्थायी बदलाव कर सकता है।
    • समझौते की अवधि: समझौते की अवधि एक फसल मौसम या पशु का एक प्रजनन चक्र होगा। अधिकतम अवधि पांच वर्ष होगी। पांच वर्ष के बाद उत्पादन चक्र के लिए, समझौते की अधिकतम अवधि को किसान और स्पॉन्सर आपस में तय करेंगे।
    • मौजूदा कानूनों से छूट: कृषि समझौते के अंतर्गत कृषि उत्पाद को उन सभी राज्य कानूनों से छूट मिलेगी, जो कृषि उत्पाद की बिक्री और खरीद को रेगुलेट करते हैं। इन उत्पादों को अनिवार्य वस्तु एक्ट, 1955 के प्रावधानों से छूट मिलेगी और उन पर स्टॉक सीमा की कोई बाध्यता लागू नहीं होगी।
    • क़ृषि उत्पाद का मूल्य निर्धारण: कृषि उत्पाद की खरीद का मूल्य समझौते में दर्ज होगा। मूल्य में बदलाव की स्थिति में समझौते में निम्नलिखित शामिल होना चाहिए: (i) ऐसे उत्पाद के लिए गारंटीशुदा मूल्य, और (ii) गारंटीशुदा मूल्य के अतिरिक्त राशि, जैसे बोनस या प्रीमियम का स्पष्ट संदर्भ। यह संदर्भ मौजूदा मूल्यों या दूसरे निर्धारित मूल्यों से संबंधित हो सकता है। गारंटीशुदा मूल्य सहित किसी अन्य मूल्य के निर्धारण के तरीके और अतिरिक्त राशि का उल्लेख भी कृषि समझैते में होगा।
    • डिलिवरी और भुगतान: अध्यादेश में प्रावधान है कि स्पॉन्सर डिलिवरी को समय पर लेने से संबंधित सभी तैयारियों के जिम्मेदार होगा और निश्चित समय के अंदर डिलिवरी लेगा।
    • बीज उत्पादन के मामले में स्पॉन्सर डिलिवरी के समय निश्चित राशि का कम से कम दो तिहाई हिस्सा चुकाएगा। शेष राशि डिलिवरी की तारीख से 30 दिनों के भीतर देय सर्टिफिकेशन के बाद चुकाई जा सकती है। दूसरे सभी मामलों में पूरी राशि डिलिवरी के समय चुकाई जानी चाहिए और बिक्री आय के विवरण वाली रसीद जारी की जानी चाहिए। राज्य सरकार भुगतान के तरीके को निर्दिष्ट करेगी।
    • विवाद निपटारा: अध्यादेश में कहा गया है कि विवाद निपटारे के लिए कन्सीलिएशन बोर्ड और सुलह की प्रक्रिया हेतु कृषि समझौता प्रदान किया जाए। बोर्ड में समझौते के विभिन्न पक्षों का निष्पक्ष और संतुलित प्रतिनिधित्व होना चाहिए। सबसे पहले सभी विवादों को समाधान के लिए बोर्ड को संदर्भित किया जाना चाहिए। अगर तीस दिनों में बोर्ड विवाद का निपटारा नहीं कर पाता, तो पक्ष समाधान के लिए सब डिविजनल मेजिट्रेट से संपर्क कर सकते हैं। उनके पास यह अधिकार होगा कि मेजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ अपीलीय अथॉरिटी (कलेक्टर या एडिशनल कलेक्टड की अध्यक्षता वाली) में अपील कर सकें। मेजिस्ट्रेट और अपीलीय अथॉरिटी को आवेदन प्राप्त होने के तीस दिनों के भीतर विवाद का निपटारा करना होगा। मेजिस्ट्रेट या अपीलीय अथॉरिटी समझौते का उल्लंघन करने वाले पक्ष पर जुर्माना लगा सकते हैं। हालांकि किसी बकाये की वसूली के लिए किसान की खेती की जमीन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती।

    अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

    नई शिक्षा नीति भारत की परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों के आधार को रखेगी बरकरार

    राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ृ21वीं शताब्दी की पहली शिक्षा नीति है जिसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है और यह नीति भारत की परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों के आधार को बरकरार रखेगी।

    नई शिक्षा नीति भारत की परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों के आधार को रखेगी बरकरार

    शाजापुर। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ृ21वीं शताब्दी की पहली शिक्षा नीति है जिसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है और यह नीति भारत की परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों के आधार को बरकरार रखेगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 स्कूल शिक्षा के परिचय की भूमिका गणित शिक्षक श्यामसुंदर पाटीदार ने रखी। कार्यशाला सह उन्मुखीकरण कार्यशाला में शिक्षक की भूमिका का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षक वास्तव में बच्चों के भविष्य को आकार देने के साथ ही हमारे राष्ट्र के भविष्य का भी निर्माण करते हैं। इनके योगदान के कारण ही भारत में शिक्षक समाज में सबसे ज्यादा सम्मानित है। यह बात एसएमडीसी एवं शिक्षकों के प्रशिक्षण सह उन्मुखीकरण कार्यशाला में एनएसपी के इंस्टीट्यूट नोडल ऑफिसर आनंद नागर ने एसएमडीसी के सदस्यों एवं शिक्षकों को प्रशिक्षण देते हुए कहीं। ग्राम लड़ावद स्थित शासकीय नवीन हाई स्कूल में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन के संबंध में एसएमडीसी एवं शिक्षकों का प्रशिक्षण सह उन्मुखीकरण कार्यशाला को संबोधित करते हुए नोडल ऑफिसर नागर ने कहा कि अपने विद्यार्थियों को निर्धारित ज्ञान, कौशल और नैतिक मूल्य प्रदान करने के लिए समाज शिक्षक या गुरुओं को उनके जरूरत की सभी चीजें प्रदान करता है। शिक्षा पर पिछली नीतियों का जोर मुख्य रूप से शिक्षा तक पहुंच के मुद्दों पर ही था। 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति जिसे 1992 में संशोधित किया गया था, के अधूरे काम को इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा पूरा करने का भरपूर प्रयास किया गया है। पहले की शिक्षा नीति में शिक्षा की गुणवत्ता, भर्ती पदस्थापना, सेवा शर्तें और शिक्षकों के अधिकारों की स्थिति वैसी नहीं थी जैसी होनी चाहिए थी और इसके परिणाम स्वरूप शिक्षकों की गुणवत्ता और उत्साह वांछित मानकों को प्राप्त नहीं कर पाता है, इसलिए अब शिक्षकों के लिए उच्चतर दर्जा और उनके प्रति आदर और सम्मान के भाव को पुनर्जीवित करना होगा, ताकि शिक्षण व्यवसाय में बेहतर लोगों को शामिल करने हेतु उन्हें प्रेरित किया जा सके।

    विभिन्न विषयों पर दिया प्रशिक्षण

    प्रशिक्षण के अगले सत्र में शिक्षक शंकरलाल सोलंकी ने प्रारंभिक बाल्यावस्था, देखभाल और शिक्षा बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान, ड्रॉपआउट बच्चों की संख्या कम करना और सभी स्तरों पर शिक्षा की सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करना विषयों पर प्रशिक्षण दिया। कार्यशाला के अंतिम सत्र में शिक्षक आनंद नागर ने 'समतामूलक और समावेशी शिक्षा, व्यवसायिक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा और जीवन पर्यंत सीखना, भारतीय भाषाओं, कला और संस्कृति के संवर्धन, प्रौद्योगिकी का उपयोग एवं एकीकरण, ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा प्रौद्योगिकी का न्याय सम्मत उपयोग सुनिश्चित करना' विषय पर एसएमडीसी के सदस्यगण एवं शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया। साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन के लिए कहा कि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षा क्षेत्र में निजी परोपकारी गतिविधियों को पुनर्जीवित करने सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करने और समर्थन करने की अनुशंसा करती है। इसके लिए हमारी संस्था शैक्षणिक अनुभवों को बढ़ाने के लिए निजी परोपकारी संसाधन जुटाने की दिशा में पहल करेगी। प्रशिक्षण सह कार्यशाला के पूर्व एसएमडीसी सदस्यों शिक्षकों एवं गणमान्य नागरिकों द्वारा संस्था परिसर में पौधारोपण किया एवं प्रशिक्षण उपरांत जलपान एवं चाय पर चर्चा की गई। प्रशिक्षण सह उन्मुखीकरण कार्यशाला में शिक्षक श्यामसुंदर पाटीदार, शंकरलाल सोलंकी, ओंकार सिंह सोलंकी, मनीष नागर, अरुण सोलंकी एवं सदस्यगण, ग्राम के गणमान्य नागरिक संतोष सिंह पंवार, मनोहरलाल पाटीदार, दौलत सिंह, उदयसिंह, ओमजी नागर, घनश्याम नागर, देवीसिंह राजपूत, गोपाल राजपूत, भादरसिंह आदि सदस्यगण उपस्थित रहे। इस अवसर पर 137 विद्यार्थियों को उपसरपंच संतोषसिंह पंवार द्वारा स्वेटर दिए जाने की घोषणा की।

    मूल्य निर्धारण रणनीतियाँ: सामान्य प्रकार और उपयोग

    कीमत तय करने की रणनीति

    मूल्य निर्धारण आपकी ब्रांडिंग, प्रतिष्ठा और अंततः आपके लाभ को दांव पर लगा देता है। चाहे आप एक ऑफ़लाइन व्यवसाय या ऑनलाइन स्टोर चलाते हों, आपकी कीमतें हमेशा आपकी संभावनाओं के अनुरूप होनी चाहिए। यदि आपको अपनी मूल्य निर्धारण रणनीति सही नहीं मिलती है, तो आपको वास्तव में कीमत चुकानी पड़ सकती है।

    कीमत तय करने की रणनीति

    लगभग 34% तक खरीदारों की संख्या भौतिक स्टोर में रहते हुए भी अपने मोबाइल उपकरणों पर कीमतों की तुलना करती है, जो आपको इस बारे में पर्याप्त बताती है कि आपके व्यवसाय के लिए मूल्य निर्धारण कितना महत्वपूर्ण है। हालाँकि, अपने उत्पादों के लिए सही मूल्य निर्धारित करना वास्तव में कभी भी पार्क में टहलना नहीं है।

    उन्हें बहुत अधिक सेट करें, और मूल्यवान बिक्री खो दें। उन्हें बहुत कम सेट करें, और राजस्व का त्याग करें। आप तराजू को कैसे संतुलित करते हैं? सौभाग्य से, कुछ मूल्य निर्धारण रणनीतियाँ और मॉडल काम आ सकते हैं।

    कीमत तय करने की रणनीति

    मूल्य निर्धारण रणनीतियाँ के प्रकार

    मूल्य निर्धारण रणनीतियाँ अनिवार्य रूप से वे प्रक्रियाएं और कार्यप्रणाली हैं जिनका उपयोग आप किसी उत्पाद के लिए आपके द्वारा ली जाने वाली राशि को निर्धारित करने के लिए कर सकते हैं। चार सामान्य प्रकार की मूल्य निर्धारण रणनीतियाँ हैं जिन्हें आप अपने लक्षित दर्शकों और अपने राजस्व लक्ष्यों के आधार पर अपना सकते हैं।

    1. मूल्य - आधारित कीमत
    2. प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण
    3. लागत से अधिक मूल्य निर्धारण
    4. अद्भुत मूल्य

    मूल्य-आधारित मूल्य निर्धारण रणनीति

    यह रणनीति इस सिद्धांत पर निर्भर करती है कि मूल्य कीमत से अधिक महंगा है। आपके अंतिम उपभोक्ता के लिए, कीमत वह है जो वे देते हैं, और मूल्य वह है जो उन्हें बदले में मिलता है। यह मूल्य वह है जो आपका उपभोक्ता इसे मानता है, जो उन्हें लगता है कि आपका उत्पाद लायक है। आप इस कथित मूल्य के अनुसार अपनी कीमतें निर्धारित करते हैं।

    इस तथाकथित मूल्य का निर्धारण करते समय क्रैक करने के लिए कठिन अखरोट की तरह लग सकता है, एक बार जब आप नियमित अंतराल पर ग्राहकों की प्रतिक्रिया एकत्र करना शुरू कर देते हैं तो चीजें आसान हो जाती हैं। इसके अलावा, यह आज के ग्राहक-केंद्रित बाजार में सबसे प्रभावी मूल्य निर्धारण रणनीतियों में से एक हो सकता है, विशेष रूप से अद्वितीय मूल्य प्रस्तावों वाले व्यवसायों के लिए।

    प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण रणनीति

    अच्छी प्रतिस्पर्धा होना हमेशा अच्छा होता है, आप जानते हैं। यह आपको बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है। यदि आप अभी शुरू कर रहे हैं, तो आप जो प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं उसके आधार पर अपनी कीमतें निर्धारित करना चाल चल सकता है। आप अपने उत्पादों की कीमत अपनी प्रतिस्पर्धियों से थोड़ा नीचे, समान या थोड़ा ऊपर रख सकते हैं।

    उदाहरण के लिए, यदि आप बेच रहे हैं शिपिंग सॉफ्टवेयर और आपके प्रतियोगी की मासिक योजना INR 1500 से INR 3000 तक है, आप इन दो नंबरों के बीच एक मूल्य निर्धारित करना चाहेंगे।

    लेकिन रुकिए, एक पकड़ है। आपकी संभावनाएँ शायद न केवल सबसे कम कीमतों की तलाश कर रही हैं बल्कि सबसे कम कीमतों पर सर्वोत्तम मूल्य की तलाश कर रही हैं। दोनों के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है।

    यह कीमतों पर प्रतिस्पर्धा के बारे में जरूरी नहीं है। यह कबूतरों के झुंड में राजहंस होने के बजाय है; इसके बारे में अपने व्यवसाय को अलग करना प्रतियोगिता से। आपको कुछ ऐसा पेश करने की ज़रूरत है जो आपकी प्रतिस्पर्धा नहीं करता है।

    उत्कृष्ट ग्राहक सेवा प्रदान करना, एक घर्षण-मुक्त वापसी नीति, या आकर्षक वफादारी लाभ आपके ब्रांड को अपने प्रतिस्पर्धियों पर बढ़त हासिल करने और बनाए रखने के लिए बेहतर स्थिति में लाने में मदद कर सकते हैं। अब, इसके शीर्ष पर, यदि आप अपने उत्पादों का प्रतिस्पर्धी रूप से पर्याप्त मूल्य निर्धारण कर रहे हैं, तो आप पहले से ही सफलता के लिए तैयार हैं।

    जहाज तेज़, सस्ता, होशियार

    लागत-प्लस मूल्य निर्धारण रणनीति

    किसी भी व्यवसाय के पीछे मूल विचार क्या है? आप कुछ बनाते हैं और इसे बनाने में जितना खर्च करते हैं उससे अधिक के लिए बेचते हैं; सादा और सरल। यह कॉस्ट-प्लस रणनीति को सभी मूल्य निर्धारण रणनीतियों में सबसे सरल बनाता है।

    आपको बस इतना करना है कि अपने उत्पाद की उत्पादन लागत लें और उसमें एक निश्चित प्रतिशत (मार्कअप) जोड़ें, जो आपके द्वारा जोड़े गए मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है।

    मान लीजिए आपने अभी-अभी एक ऑनलाइन परिधान स्टोर शुरू किया है और आपको शर्ट के बिक्री मूल्य की गणना करने की आवश्यकता है। मान लीजिए कि खर्च किए गए खर्च हैं:

    सामग्री की लागत = INR 200

    श्रम लागत = INR 400

    ओवरहेड लागत = INR 300

    यहां कुल लागत INR 1000 है। यदि आपका मार्कअप 40% है, तो आप निम्न सूत्र का उपयोग करके आसानी से बिक्री मूल्य की गणना कर सकते हैं:

    विक्रय मूल्य = INR 1000(1 + 0.40)

    इस तर्क से, आपकी कमीज़ का विक्रय मूल्य INR 1400 होगा। आसान है, है न? हालांकि यह रणनीति आपकी सभी लागतों को कवर करती है और अनुमानित रूप से लगातार लाभ सुनिश्चित करती है, यह मूल्य नीति बाजार की स्थितियों पर विचार नहीं करती है और कभी-कभी अक्षम हो सकती है।

    गतिशील मूल्य निर्धारण रणनीति

    यह अपेक्षाकृत लचीली मूल्य निर्धारण रणनीति है जहां आप बाजार और ग्राहकों की मांग के आधार पर वास्तविक समय में कीमतों को समायोजित कर सकते हैं। विचार बदलते बाजार को भुनाने और एक ही उत्पाद को अलग-अलग लोगों को अलग-अलग कीमतों पर बेचने का है।

    आपने होटल, एयरलाइंस, कार्यक्रम स्थल, या कोई देखा होगा ईकामर्स स्टोर इस रणनीति को अपनाएं और नाखून दें। उदाहरण के लिए, एक ईकामर्स स्टोर अक्सर उस मामले के लिए बाजार मूल्य, मौसम, प्रतिस्पर्धियों, या यहां तक ​​​​कि एक नए संग्रह के लॉन्च के आधार पर अपनी कीमतों को समायोजित करेगा।

    यदि आप उस तरह का व्यवसाय चलाते हैं तो आपको यह प्रभावी लगेगा। एक उपभोक्ता के जूते में कदम रखें। हो सकता है कि आपको किसी और की तरह अच्छा न मिले। क्या आपको लगता है यह उचित है? हमें बताइए।

    मूल्य निर्धारण की कौन सी रणनीति आपके लिए बिल्कुल सही है?

    यदि आप इस बारे में सोच रहे हैं कि इनमें से कौन सी मूल्य निर्धारण रणनीति आपके लिए उपयुक्त है व्यापार सबसे अच्छा, यहाँ एक टिप है। सही उत्पाद मूल्य निर्धारण के लिए दो या अधिक विधियों के संयोजन पर विचार करें।

    किसी भी मामले में, यह निर्धारित करना और यह निर्धारित करना आवश्यक से अधिक है कि आप वास्तव में क्या शुल्क लेते हैं, अपने खरीदार व्यक्तित्व और खंडों को परिभाषित करें, और कीमतें निर्धारित करने से पहले व्यापक बाजार अनुसंधान करें। अच्छी बातें समय लेती हैं; इसे पर्याप्त दें।

    कृषि क्षेत्र के लिए 1.63 लाख करोड़ का पैकेज, किसानों को मिलेगा उपज का बेहतर मूल्य: नीति आयोग

    किसान

    कृषि क्षेत्र के लिए 1.63 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा
    वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कोविड-19 आर्थिक पैकेज की तीसरी किस्त का ब्योरा जारी करते हुए कृषि क्षेत्र के लिए कुल 1.63 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की। इसके अलावा उन्होंने अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से बाहर करने के लिए कानून में संशोधन की भी घोषणा की।

    आवश्यक वस्तु अधिनियम से होगा फायदा
    इसके साथ ही वित्त मंत्री ने कहा कि किसानों को अपनी उपज बिक्री के लिए अपनी पसंद के बाजार में कहीं भी बेचने की सुविधा देने को भी एक नया कानून बनाया जाएगा। कुमार ने ट्वीट किया कि, 'वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन सहित किसानों के लिए विभिन्न उपायों की घोषणा की है। इससे किसानों को अधिक स्वायत्तता मिलेगी और उन्हें अपनी उपज के लिए आकर्षक मूल्य मिल सकेगा।'

    कृषि क्षेत्र के लिए शुरू होगा नया दौर- अमिताभ कान्त
    नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कान्त ने भी कहा कि ये उपाय भारतीय किसान और कृषि क्षेत्र के लिए एक नया दौर शुरू करेंगे। उन्होंने कहा कि आवश्चक वसतु अधिनियम में संशोधन से किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिल सकेगा। उन्हें अपनी उपज को बेचने के लिए अधिक स्वायत्ता होगी।

    नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा है कि सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन सहित कृषि क्षेत्र के लिए जिन उपायों की घोषणा की है, उनसे किसानों को बेहतर मूल्य मिलने में मदद मिलेगी।

    कृषि क्षेत्र के लिए 1.63 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा
    वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कोविड-19 आर्थिक पैकेज की तीसरी किस्त का ब्योरा जारी करते हुए कृषि क्षेत्र के लिए कुल 1.63 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की। इसके अलावा उन्होंने अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से बाहर करने के लिए कानून में संशोधन की भी घोषणा की।

    आवश्यक वस्तु अधिनियम से होगा फायदा
    इसके साथ ही वित्त मंत्री ने कहा कि किसानों को अपनी उपज बिक्री के लिए अपनी पसंद के बाजार में कहीं भी बेचने की सुविधा देने को भी एक नया कानून बनाया जाएगा। कुमार ने ट्वीट किया कि, 'वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन सहित किसानों के लिए विभिन्न उपायों की घोषणा की है। इससे किसानों को अधिक स्वायत्तता मिलेगी और उन्हें अपनी उपज के लिए आकर्षक मूल्य मिल सकेगा।'

    कृषि क्षेत्र के लिए शुरू होगा नया दौर- अमिताभ कान्त
    नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कान्त ने भी कहा कि ये उपाय भारतीय किसान और कृषि क्षेत्र के लिए एक नया दौर शुरू करेंगे। उन्होंने कहा कि आवश्चक वसतु अधिनियम में संशोधन से किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिल सकेगा। उन्हें अपनी उपज को बेचने के लिए अधिक स्वायत्ता होगी।

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